Hindi Chapter Bazar Darshan Class 12 Full notes – Free PDF Download

Hello friends Shivansh Sharma Here from crackcbse learning platform. Today I am going to give your CBSE class 12th Hindi Aroh book chapter 9 – बाजार दर्शन जैनेन्द्र कुमार summary and question and answer that will support to boosting your understanding and you can improve your understanding. And you achieve maximum marks in CBSE board exam and school test by using this article and you also visit our official telegram channel for free notes. Hindi chapter bazar darshan class 12 full notes and short summary and you will also give your feedback after reading this and, without any delay let’s get started-

बाजार दर्शन जैनेन्द्र कुमार:-

प्रतिपादय-

‘बाजार दर्शन निबंध में गहरी वैचारिकता व साहित्य के सुलभ लालित्य का संयोग है। कई दशक पहले लिखा गया यह लेख आज भी उपभोक्तावाद व बाजारवाद को समझाने में बेजोड़ हैजैनेंद्र जी अपने परिचितों, मित्रों से जुड़े अनुभव बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि बाजार की जादुई ताकत मनुष्य को अपना गुलाम बना लेती है। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके विपरीत, बाजार की चमक-दमक में फँसने के बाद हम असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल होकर सदा के लिए बेकार हो सकते हैं। लेखक ने कहीं दार्शनिक अंदाज में तो कहीं किस्सागोई की तरह अपनी बात समझाने की कोशिश की है। इस क्रम में इन्होंने केवल बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र बताया है।

सारांश-

लेखक अपने मित्र की कहानी बताता है कि एक बार वे बाजार में मामूली चीज लेने गए परंतु वापस बंडलों के साथ लौटे। लेखक के पूछने पर उन्होंने पत्नी को दोषी बताया। लेखक के अनुसार, पुराने समय से पति इस विषय पर पत्नी की ओट लेते हैं। इसमें मनीबैग अर्थात पैसे की गरमी भी विशेष भूमिका अदा करता है। पैसा पावर है, परंतु उसे प्रदर्शित करने के लिए बैंक बैलेंस मकान कोठी आदि इकट्ठा किया जाता है। पैसे की पर्चेजिंग पावर के प्रयोग से पावर का रस मिलता है। लोग संयमी भी होते हैं। वे पैसे को जोड़ते रहते हैं तथा पैसे के जुड़ा होने पर स्वयं को गर्वीला महसूस करते हैं। मित्र ने बताया कि सारा पैसा खर्च हो गया। मित्र की अधिकतर खरीद पर्चेजिंग पावर के अनुपात से आई थी जरूरत के हिसाब से । लेखक कहता है कि फालतू चीज की खरीद का प्रमुख कारण बाजार का आकर्षण है।

मित्र ने इसे शैतान का जाल बताया है। यह आकर्षण ऐसा होता है कि बेहया ही हो जो इसमें नहीं फँसता । न कि बाजार अपने रूपजाल में सबको उलझाता है। इसके आमंत्रण में आग्रह नहीं है। ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है। यह इच्छा जगाता है। हर आदमी को चीज की कमी महसूस होती है। चाह और अभाव मनुष्य को पागल कर देता है। असंतोष, तृष्णा व ईष्र्या से मनुष्य सदा के लिए बेकार हो जाता है।

लेखक का दूसरा मित्र दोपहर से पहले बाजार गया तथा शाम को खाली हाथ वापस आ गया। पूछने पर बताया कि बाजार में सब कुछ लेने योग्य था परंतु कुछ भी न ले पाया। एक वस्तु लेने का मतलब था, दूसरी छोड़ देना। अगर अपनी चाह का पता नहीं तो सब ओर की चाह हमें घेर लेती है। ऐसे में कोई परिणाम नहीं होता। बाजार में रूप का जादू है। यह तभी असर करता है जब जेब भरी हो तथा मन खाली हो। यह मन व जेब के खाली होने पर भी असर करता है। खाली मन को बाजार की चीजें निमंत्रण देती हैं। सब चीजें खरीदने का मन करता है।

अभिमान बढ़ता है। जादू से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि बाजार जाते समय मन खाली न रखो। मन में लक्ष्य हो तो बाजार आनंद देगा। वह आपसे कृतार्थ होगा। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना । मन खाली रखने का मतलब मन बंद नहीं करना है। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। मनुष्य अपूर्ण है। मनुष्य इच्छाओं का निरोध नहीं कर सकता। यह लोभ को जीतना नहीं है बल्कि लोभ की जीत है। मन को बलात बंद करना हठयोग है। वास्तव में मनुष्य को अपनी अपूर्णता स्वीकार कर लेनी चाहिए। सच्चा कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। अतः मन की भी सुननी चाहिए क्योंकि वह भी उद्देश्यपूर्ण है। मनमानेपन को छूट नहीं देनी चाहिए।

लेखक के पड़ोस में भगत जी रहते थे। वे लंबे समय से चूरन बेच रहे थे। चूरन उनका सरनाम था। वे प्रतिदिन छह आने पैसे से अधिक नहीं कमाते थे। वे अपना चूरन थोक व्यापारी को नहीं देते थे और न ही पेशगी ऑर्डर लेते थे। छह आने पूरे होने पर वे बचा चूरन बच्चों को मुफ्त बाँट देते थे। वे सदा स्वस्थ रहते थे। उन पर बाजार का जादू नहीं चल सकता था। वे निरक्षर थे। बड़ी-बड़ी बातें जानते नहीं थे।

उनका मन अडिग रहता था। पैसा भीख माँगता है कि मुझे लो। वह निर्मम व्यक्ति पैसे को अपने आह गर्व में बिलखता ही छोड़ देता है। पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। पैदल व्यक्ति के पास से धूल उड़ाती मोटर
चली जाए तो व्यक्ति परेशान हो उठता है। वह अपने जन्म तक को कोसता है, परंतु यह व्यंग्य चूरन वाले व्यक्ति पर कोई असर नहीं करता। लेखक ऐसे बल के विषय में कहता है कि यह कुछ अपर जाति का तत्व है। कुछ लोग इसे आत्मिक, धार्मिक व नैतिक कहते हैं।

Also read-

लेखक कहता है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है। एक दिन बाजार के चौक में भगत जी व लेखक की राम-राम हुई। उनकी आँखें खुली थीं। वे सबसे मिलकर बात करते हुए जा रहे थे। लेकिन वे भौचक्के नहीं थे और ना ही वे किसी प्रकार से लाचार थे। भाँति-भाँति के बढ़िया माल से चौक भरा था किंतु उनको मात्र अपनी जरूरत की चीज से मतलब था। वे रास्ते के फैंसी स्टोरों को छोड़कर पंसारी की दुकान से अपने काम की चीजें लेकर चल पड़ते हैं। अब उन्हें बाजार शून्य लगता है। फिर चाँदनी बिछी रहती हो या बाजार के आकर्षण बुलाते रहें, वे उसका कल्याण ही चाहते हैं।

लेखक का मानना है कि बाजार को सार्थकता वह मनुष्य देता है जो अपनी जरूरत को पहचानता है। जो केवल पर्चेजिंग पॉवर के बल पर बाजार को व्यंग्य दे जाते हैं, वे न तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। ये कपट को बढ़ाते हैं जिससे सद्भाव घटता है। सद्भाव नष्ट होने से ग्राहक और बेचक रह जाते हैं। वे एक-दूसरे को ठगने की घात में रहते हैं। ऐसे बाजारों में व्यापार नहीं शोषण होता है। कपट सफल हो जाता है तथा बाजार मानवता के लिए विडंबना है और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है जो उसका शास्त्र बना हुआ है। वह अर्थशास्त्र सरासर औधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीतिशास्त्र है।

बहुविकल्पी प्रश्न-

प्र-1 बाजार के जादू का प्रभाव कब अधिक पड़ता है?

(क) जब ग्राहक का मन भरा होता है
(ख) जब ग्राहक का मन खाली होता है
(ग) जब ग्राहक खुश होता है
(घ) जब ग्राहक दुखी होता है

प्र-2 बाजार के जादू के प्रभाव से बचने का सबसे सरल उपाय क्या है?

(क) जब मन खाली हो तब बाजार जाओ
(ख) जब मन भरा हो तब बाजार न जाओ
(ग) जब मन खाली हो तब बाजार न जाओ
(घ) जब मन दुखी हो तब बाजार मत जाओ

प्र 3 बाजार का आमंत्रण कैसा होता है?

(क) मूक (मौन) और चाह जगाने वाला
(ख) मन को शांत कर देने वाला
(ग) मन में विराग पैदा करने वाला
(घ) दुकानदार को लाभ पहुँचाने वाला

प्र-4 बाजार को सार्थकता कौन देता है?

(क) जो लोग बाजार से कुछ नहीं खरीदते हैं
(ख) जो यह जानते हैं कि उन्हें बाजार से क्या खरीदना है
(ग) जो यह नहीं जानते हैं कि उन्हें क्या खरीदना चाहिए
(घ) जो बाजार जाकर सब कुछ खरीदना चाहते हैं

प्र-5 लेखक ने बाजार के जादू की तुलना किससे की है?

(क) चुंबक के जादू से
(ख) लोहे के जादू से
(ग) हाथ के जादू से
(घ) दूकान के जादू से

प्र-6 लेखक के दूसरे मित्र ने बाजार से क्या खरीदा?
(क) ढेर सारा सामान
(ख) केवल एक सामान
(ग) केवल दो सामान
(घ) कुछ भी नहीं

प्र-7 लोग बाजार से सामान किस हिसाब से खरीदते हैं?
(क) अपनी कमजोरी छिपाने के हिसाब से
(ख) पर्चेजिंग पावर के हिसाब से
(ग) दूसरों को दिखाने के हिसाब से
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्र-8 मन को किस बात की छूट नहीं मिलनी चाहिए?

(क) मनन करने की
(ख) हिसाब लगाने की
(ग) चक्कर खाने की
(घ) मनमानी करने की

प्र-9 छह आने की कमाई होने के बाद भगत जी चूरन का क्या करते थे?

(क) अगले दिन के लिए रख लेते थे।
(ख) बच्चों में मुफ़्त बाँट देते थे
(ग) दुकान पर दे देते थे
(घ) कूड़ेदान में फेंक देते थे

प्र-10 बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को लेखक ने क्या नाम दिया है?

(क) दर्शनशास्त्र
(ख) राजनीति शास्त्र
(ग) अनीतिशास्त्र
(घ) ज्योतिष शास्त्र

उत्तर-

1-(ख) जब ग्राहक का मन खाली होता है
2-(ग) जब मन खाली हो तब बाजार न जाओ
3-(क) मूक (मौन) और चाह जगाने वाला
4- (ख) जो यह जानते हैं कि उन्हें बाजार से क्या खरीदना है
5- (क) चुंबक के जादू से
6- (घ) कुछ भी नहीं
7 – (ख) पर्चेजिंग पावर के हिसाब से
8 – (घ) मनमानी करने की
9 – (ख) बच्चों में मुफ़्त बाँट देते थे
10-(ग) अनीतिशास्त्र

Conclusion-

I hope that the notes bazar darshan short summary and question and answer will be of great assistance to your study .and it is very important for your board preparation I hope your all doubt is clear for reading this article. If you have any questions then you can ask us with the help of the comment section and my team try to solve your doubt you read this article find any errors then tell me in the comment section. Join our telegram channel for free pdf and many more

Thank you –

Leave a Comment