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शिरीष के फूल हजारी प्रसाद द्विवेदी–
प्रतिपादय-
शिरीष के फूल शीर्षक निबंध कल्पलता से उद्धृत है। इसमें लेखक ने आँधी, लू और गरमी की प्रचंडता में भी अवधूत की तरह अविचल होकर कोमल पुष्पों का सौंदर्य बिखेर रहे शिरीष के माध्यम से मनुष्य की अजेय जिजीविषा और तुमुल कोलाहल कलह के बीच धैर्यपूर्वक • लोक के साथ चिंतारत कर्तव्यशील बने रहने को महान मानवीय मूल्य के रूप में स्थापित किया है। ऐसी भावधारा में बहते हुए उसे देह बल के ऊपर आत्मबल का महत्व सिद्ध करने वाली इतिहास विभूति गांधी जी की याद हो आती है तो वह गांधीवादी मूल्यों के अभाव की पीड़ा से भी कसमसा उठता है।
निबंध की शुरुआत में लेखक शिरीष पुष्प की कोमल सुंदरता के जाल बुनता है, फिर उसे भेदकर उसके इतिहास में और फिर उसके जरिये मध्यकाल के सांस्कृतिक इतिहास में पैठता है . फिर तत्कालीन जीवन व सामंती वैभव-विलास को सावधानी से उकेरते हुए उसका खोखलापन भी उजागर करता है। वह अशोक के फूल के भूल जाने की तरह ही शिरीष को नजरअंदाज किए जाने की साहित्यिक घटना से आहत हैं। इसी में उसे सच्चे कवि का तत्त्व-दर्शन भी होता है। उसका मानना है कि योगी की अनासक्त शून्यता और प्रेमी की सरस पूर्णता एक साथ उपलब्ध होना सत्कवि होने की एकमात्र शर्त है। ऐसा कवि ही समस्त प्राकृतिक और मानवीय वैभव में रमकर भी चुकता नहीं और निरंतर आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा देता है। सारांश- लेखक शिरीष के पेड़ों के समूह के बीच बैठकर लेख लिख रहा है। जेठ की गरमी से धरती जल रही है। ऐसे समय में शिरीष ऊपर से नीचे तक फूलों से लदा है। कम ही फूल गरमी में खिलते हैं। अमलतास केवल पंद्रह-बीस दिन के लिए फूलता है। कबीरदास को इस तरह दस दिन फूल खिलना पसंद नहीं है। शिरीष में फूल लंबे समय तक रहते हैं। वे वसंत में खिलते हैं तथा भादो माह तक फूलते रहते हैं। भीषण गरमी और लू में यही शिरीष अवधूत की तरह जीवन की अजेयता का मंत्र पढ़ाता रहता है। शिरीष के वृक्ष बड़े व छायादार होते हैं। पुराने रईस मंगल-जनक वृक्षों में शिरीष को भी लगाया करते थे। वात्स्यायन कहते हैं कि बगीचे के घने छायादार वृक्षों में ही झूला लगाना चाहिए। पुराने कवि बकुल के पेड़ मैं झूला डालने के लिए कहते हैं, परंतु लेखक शिरीष को भी उपयुक्त मानता है।
शिरीष की डालें कुछ कमजोर होती हैं, परंतु उस पर झूलनेवालियों का वजन भी कम ही होता है। शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में कोमल माना जाता है। कालिदास ने लिखा है कि शिरीष के फूल केवल भौरों के पैरों का दबाव सहन कर सकते हैं, पक्षियों के पैरों का नहीं। इसके आधार पर भी इसके फूलों को कोमल माना जाने लगा, पर इसके फलों की मजबूती नहीं देखते। वे तभी स्थान छोड़ते हैं, जब उन्हें धकिया दिया जाता है। लेखक को उन नेताओं की याद आती है जो समय को नहीं पहचानते तथा धक्का देने पर ही पद को छोड़ते हैं। लेखक सोचता है कि पुराने की यह अधिकार लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती। वृद्धावस्था व मृत्यु-ये जगत के सत्य हैं। शिरीष के फूलों को भी समझना चाहिए कि झड़ना निश्चित है, परंतु सुनता कोई नहीं । मृत्यु का देवता निरंतर कोड़े चला रहा है। उसमें कमजोर समाप्त हो जाते हैं। प्राणधारा व काल के बीच संघर्ष चल रहा है। हिलने-डुलने वाले कुछ समय के लिए बच सकते हैं। झड़ते ही मृत्यु निश्चित है।
लेखक को शिरीष अवधूत की तरह लगता है। यह हर स्थिति में ठीक रहता है। भयंकर गरमी में भी यह अपने लिए जीवन रस ढूँढ लेता है। एक वनस्पतिशास्त्री ने बताया कि यह वायुमंडल से अपना रस खींचता है तभी तो भयंकर लू में ऐसे सुकुमार केसर उगा सका । अवधूतों के मुँह से भी संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर व कालिदास उसी श्रेणी के हैं। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका जो फक्कड़ नहीं बन सका, जिससे लेखा-जोखा मिलता है, वह कवि नहीं है। कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने ब्रहमा, वाल्मीकि व व्यास को ही कवि माना। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है फक्कड़ होना बहुत जरूरी है। कालिदास अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञ विदग्ध प्रेमी थे। उनका एक- एक श्लोक मुग्ध करने वाला है। शकुंतला का वर्णन कालिदास ने किया।
• उसका राजा दुष्यंत ने भी शंकुतला का चित्र बनाया, परंतु उन्हें हर बार उसमें कमी महसूस होती थी । काफी देर बाद उन्हें समझ आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष का फूल लगाना भूल गए हैं। कालिदास सौंदर्य के बाहरी आवरण को भेदकर उसके भीतर पहुँचने में समर्थ थे। वे सुख-दुख दोनों में भाव-रस खींच लिया करते थे। ऐसी प्रकृति सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ में भी थी। शिरीष पक्के अवधूत की तरह लेखक के मन में भावों की तरंगें उठा देता है। वह आग उगलती धूप में भी सरस बना रहता है। आज देश में मारकाट, आगजनी, लूटपाट आदि का बवंडर है। ऐसे में क्या स्थिर रहा जा सकता है ? शिरीष रह सका है। गांधी जी भी रह सके थे। ऐसा तभी संभव हुआ है जब वे वायुमंडल से रस खींचकर कोमल व कठोर बने । लेखक जब शिरीष की ओर देखता है तो हूक उठती है-हाय वह अवधूत आज कहाँ है।
बहुविकल्पी प्रश्न –
प्र-1 भीषण गर्मी और लू के बीच किस वृक्ष के फूल खिले रहते हैं?
(क) अशोक
(ख) अमलतास
(ग) शिरीष
(घ) वट
प्र-2 लेखक ने शिरीष की तुलना किससे की है?
(क) अवधूत से
(ख) गृहस्थ से
(ग) अग्नि से
(घ) सेवक से
प्र-3 संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूल को क्या माना गया है?
(क) कठोर
(ख) ठंडा
(ग) स्वच्छ
(घ) कोमल
प्र-4 कालिदास ने शिरीष के फूलों के बारे में क्या लिखा है?
(क) शिरीष के फूल कठोर होते हैं
(ख) केवल भौरों के पैरों का दबाव ही सह सकता है
(ग) हलके और मजबूत होते हैं
(घ) केवल चिड़ियों के पैरों का दबाव ही सह सकता है
प्र-5 लेखक ने जगत के अति प्रामाणिक सत्य किसे माना है?
(क) जरा और मृत्यु को
(ख) धन और दौलत को
(ग) माया और मोह को
(घ) गृहस्थ और संन्यासी को
प्र-6 संसार की सबसे सरस रचनाएँ किनके मुँह से निकली हैं?
(क) गृहस्थों के मुँह से
(ख) राजाओं के मुँह से
(ग) अवधूतों के मुँह से
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्र-7 कर्णाट राज की रानी विज्जिका ने किन्हें सर्वश्रेष्ठ कवि माना है?
(क) ब्रह्मा जी को
(ख) वेद व्यास जी को
(ग) वाल्मीकि जी को
(घ) इनमें से सभी को
प्र-8 राजा दुष्यंत द्वारा शकुंतला के बनाए गए चित्र में क्या कमी रह गई थी ?
(क) शकुंतला की भौहें तिरछी थी
(ख) कानों में शिरीष का फूल पहनाना भूल गए
(ग) केश-सज्जा ठीक से नहीं कर पाए
(घ) गले का हार पहनाना भूल गए
प्र-9 लेखक ने सुमित्रानंदन पंत को क्यों महत्व दिया है?
(क) उन्होंने प्रकृति के सूक्ष्म रूप का चित्रण किया है
(ख) लेखक से उनकी मित्रता थी
(ग) दूसरे कवियों की तरह ही उन्होंने रचनाएँ की हैं
(घ) कालिदास और सुमित्रानंदन पंत एक ही भाषा के कवि हैं
प्र-10 कालिदास शकुंतला का वर्णन करने में क्यों सफल रहे ?
(क) क्योंकि उन्हें संस्कृत का ज्ञान था
(ख) क्योंकि वे जंगल में अकेले रहते थे
(ग) क्योंकि उन्हें भगवती काली का वरदान प्राप्त था
(घ) क्योंकि वे विदग्ध, अनासक्त और स्थिर प्रज्ञ प्रेमी थे।
उत्तर-
1- (ग) शिरीष
2-(क) अवधूत से
3- (घ) कोमल
4 (ख) केवल भौरों के पैरों का दबाव ही सह सकता है
5-(क) जरा और मृत्यु को
6- (ग) अवधूतों के मुँह से
7-(घ) इनमें से सभी को
8-(ख) कानों में शिरीष का फूल पहनाना भूल गए
9-(क) उन्होंने प्रकृति के सूक्ष्म रूप का चित्रण किया है
10-(घ) क्योंकि वे विदग्ध, अनासक्त और स्थिर प्रज्ञ प्रेमी थे
Conclusion-
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