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Class 10 Hindi Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Summary,Explanation
पाठ की रूपरेखा (Summary)
यूँ तो यशपाल ने लखनवी अंदाज़ व्यंग्य यह साबित करने के लिए लिखा था कि बिना कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती, परंतु एक स्वतंत्र रचना के रूप में इस रचना को पढ़ा जा सकता है। यशपाल उस पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करते हैं, जो वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन शैली का आदी है। कहना न होगा कि आज के समय में भी ऐसी परजीवी संस्कृति को देखा जा सकता है।
पाठ का सार
‘लखनवी अंदाज़’ नामक प्रस्तुत पाठ में लेखक ने ऐसे नवाब को वर्ण्य विषय बनाया है जो लेखक के समक्ष अपनी नवाबी का प्रदर्शन करते हुए खीरे की फाँकों को खाने की जगह सूंघकर रसास्वादन करता है और सूंघते हुए खीरे की एक-एक फाँक को खिड़की के बाहर फेंकता जाता है। ऐसा करके व डकार लेकर वह तृप्त होने का नाटक करता है। उसके इस व्यवहार से लेखक सोचता है कि इस तरह तो बिना विचार और पात्रों के नई कहानी भी लिखी जा सकती है।
लेखक की रेल यात्रा
लेखक अपनी मितव्ययी प्रवृत्ति के कारण सेकंड क्लास में यात्रा नहीं करना चाह रहा था। फिर यह सोचकर कि भीड़ से भी बच जाएगा, कहानी के संबंध में भी सोच सकेगा और उसे प्राकृतिक दृश्य खिड़की से देखने को मिल जाएँगे। अतः सेकंड क्लास का ही टिकट ले लिया।
गाड़ी छूट रही थी, भागकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ गया। लेखक को अनुमान था कि डिव्वा खाली होगा, लेकिन उसने देखा कि एक वर्थ पर लखनऊ के नवाबी अंदाज़ में एक सफ़ेदपोश सज्जन पालथी मारे बैठे हैं, जिनके सामने तौलिए पर दो चिकने खीरे रखे हुए हैं। लेखक का सहसा आ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। नवाब साहब ने लेखक के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाई और न लेखक ने ही परिचय करने का प्रयास किया। लेखक ने उनकी तरफ से आँखें चुरा लीं।
नवाब साहब का भाव-परिवर्तन:
लेखक सामने बैठे नवाब साहब के बारे में सोचने लगा कि नवाब साहब ने किफ़ायत की दृष्टि से सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा। अब उन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा कि कोई सेकंड क्लास में सफ़र करता हुआ उन्हें देखे। सफ़र का वक्त काटने के लिए खीरे खरीदे होंगे। लगता है अब उन्हें किसी के सामने खीरा खाने में संकोच लग रहा होगा।
नवाब साहब खिड़की से बाहर देखते रहे और स्थिति पर विचार करते रहे। यकायक भाव-परिवर्तन करते हुए लेखक से खीरे का शौक फरमाने के लिए कहा। लेखक को नवाब साहब का यकायक भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा और लेखक ने शुक्रिया अदा करते हुए कहा-‘किबला शौक फरमाएँ।
नवाब साहब का खीरा काटना:
नवाब साहब कुछ और देर खिड़की के बाहर देखकर कुछ निश्चय कर नीचे रखे पानी से भरे लोटे से खीरे को धोए, तौलिया से पोंछे, जेब से चाकू निकाला, उनके सिर काटे, गोदे, झाग निकाला, छीले और फाँके काटकर तौलिया पर करीने से रखे। नवाब साहब ने फाँकों के ऊपर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्थी बुरक दी। लेखक उनकी भाव-भंगिमा देखे जा रहा था। उनकी भाव-भंगिमा से लेखक को स्पष्ट हो रहा था कि नवाब साहब के मुँह में खीरे के रसास्वादन की कल्पना से ही पानी आ रहा है
एक बार नवाब साहब ने फिर लेखक की ओर देखा और कहा-वल्लाह, शौक फरमाएँ, लखनऊ का वालम खीरा है। नमक-मिर्च छिड़क दिएजाने पर ताजे खीरे की पनियारी फाँके देखकर लेखक के मुँह में भी पानी आ रहा था, लेकिन पहले पूछने पर इनकार कर चुके थे, इसलिएकुछ सोचकर आत्मसम्मान रखते हुए ‘शुक्रिया’ कहकर कहा-मेरी मेदा ज़रा कमज़ोर है, ‘किबला शौक फरमाएँ।
नवाब साहब ने एक-एक फाँक बाहर फेंक दी-
नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी खीरों की फाँक की ओर एक बार फिर देखा, फिर खिड़की के बाहर देखा। दीर्घ श्वास लिया। फिर एक-एक फाँक उठाई, होंठों तक ले गए, सूंघा, स्वाद के आनंद में पलकें मुँद गईं। मुँह में भर आए पानी को गले में उतार लिया और फाँकों को एक-एक करके सूंघकर बाहर फेंकते गए। उसके बाद तौलिए से हाथ और होंठ पोंछकर गर्व से लेखक की ओर देखा।
नवाब साहब की डकार-
नवाब साहब खीरे सूंघकर और फेंककर हाथ-मुँह पोंछकर लेट गए मानो इस काम में वे थक गए हों। लेखक नवाबीप्रक्रिया को देखकर शर्म महसूस कर रहा था और सोच रहा था कि खीरों के प्रयोग की नई प्रक्रिया अच्छी ज़रूर कही जा सकती है किंतु क्या इस तरीके से उदर की तृप्ति हो सकती है। इसी बीच नवाब साहब को डकार आई और लेखक की ओर देखते हुए कहा-‘खीरा लजीज होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’
लेखक को मिली प्रेरणा
शब्दार्थ (शब्दों का अर्थ-बोध)
- मुफ़स्सिल-केंद्रीय स्थान और उसके आसपास, स्थानीय। उतावली-बेचैनी।
- प्रतिकूल-विपरीत।
- निर्जन-एकांत, खाली स्थान।
- एकांत-चिंतन-अकेले में सोचना।
- विघ्न-बाधा।
- अपदार्थ वस्तु-सामान्य चीज़ ।
- आत्मसम्मान-स्वाभिमान।
- आँखें चुराना-बचने का प्रयास।
- ठाली बैठना-कुछ काम न करना।
- किफायत-मितव्ययिता, कम खर्च करना।
- गवारा न होना-स्वीकार न होना।
- कनखियाँ-तिरछी नज़र से देखना।
- गौर करना-ध्यान देना।
- आदाब अर्ज-अभिवादन करना।
- भाव-परिवर्तन-भाव (विचारों) में परिवर्तन।
- भाँप लेना-समझ जाना।
- शराफ़त-सज्जनता, शालीनता।
- गुमान-घमंड।
- लथेड़ लेना-जबरदस्ती सम्मिलित करना।
- किबला-आप (सम्मानसूचक शब्द)।
- दृढ़ निश्चय-मज़बूत विचार।
- एहतियात-सावधानी।
- करीने से-अच्छी तरह से सजाना।
- बुरकना-छिड़कना।
- भाव-भंगिमा-चेहरे के बदलते स्वरूप।
- स्फुरण-फड़कना, हिलना।
- प्लावित होना-पानी भर जाना।
- असलियत-वास्तविकता, सचमुच।
- वल्लाह-कसम से।
- पनियाती-पानी छोड़ती।
- मुँह में पानी आना-जी ललचाना।
- तलब महसूस होना-इच्छा करना।
- सतृष्ण-इच्छा सहित।
- दीर्घ निश्वास-लंबी श्वास।
- पलकें मूंदना-आँखें बंद कर लेना।
- तसलीम -सम्मान।
- सिर खम करना-सिर झुकाना।
- तहज़ीब-शिष्टता।
- नफ़ासत-कोमलता।
- नज़ाकत-कोमलता। नफ़ीस-बढ़िया।
- एक्स्ट्रैक्ट-अमूर्त, सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो।
- लज़ीज़-स्वादिष्ट ।
- सकील-आसानी से न पचने वाला।
- ज्ञान-चक्षु-ज्ञान की आँखें।